मोला राम तोमर- यह नाम उत्तराखण्ड की संस्कृति, कला,
इतिहास एवं साहित्य को विरचित करने वाले उस व्यक्ति का नाम है, जिसने अपनी
अद्वितीय प्रतिभा से इस राज्य के इतिहास को हमारे लिये संजोकर रखा। मोला
राम का जन्म श्री मंगत राम एवं श्रीमती रामी देवी के घर 1743 में श्रीनगर
(गढवाल) में हुआ। कहा जाता है कि इनके पुरखे श्याम दास और हरदास मुगल
शासकों के दरबार में चित्रकार थे और हिमाचल प्रदेश के मूल निवासी थे। लेकिन
दाराशिकोह के पुत्र सलमान शिकोह के साथ 1695 में औरंगजेब के कहर से बचने
के लिये गढ़वाल के राजा महाराज पृथ्वी शाह की शरण में आ
गये। महाराज ने इन्हें प्रश्रय दिया और अपने राज्य में चित्रकारी आदि का
काम इन्हें सौंप दिया। उन्हीं के वंश में मोला राम का जन्म हुआ और इन्होनें
1777 से 1804 तक महाराज प्रदीप शाह, महाराज ललित शाह, महाराज, जयकृत शाह और महाराज प्रद्युम्न शाह
के साथ कार्य किये। इस बीच में मोलाराम ने गढ़वाली शैली के चित्रों का
आविष्कार कर यहां की चित्रकार शैली को एक नई पहचान दी और इस शैली को
अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये एक विद्यालय की भी स्थापना की। 1833 में इनकी
मृत्यु श्रीनगर में ही हुई, इन्होंने अपने जीवन काल में कई चित्र बनाये और
कई पुस्तकों तथा कविताओं की भी रचना की। इनके बनाये चित्र ब्रिटेन
के संग्रहालय, बोस्ट्न संग्रहालय, हे०न०ब० गढ़वाल वि०वि० के संग्रहालय, भारत
कला भवन, बनारस, अहमदाबाद के संग्रहालय और लखनऊ, दिल्ली, कलकत्ता तथा
इलाहाबाद की आर्ट गैलरी में देखे जा सकते हैं। इन पर बैरिस्टर मुकुन्दी लाल जी ने 1968 में एक पुस्तक भी लिखी।
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