शुक्रवार, 26 मई 2017

उत्तराखण्ड से सम्बन्धित प्रमुख पुस्तकें

1. मेम्बेर्स ऑफ़ देहरादून (1874) – जी. आर. जी. विलियम्स

2. हिमालयन डिस्ट्रिक्ट गजेटियर – ए. एफ. टी. एटकिन्सन
3. होली हिमालय – ई. सेरमन ओकले
4. गढ़वाल गजेटियर्स – एच. जी. वाल्टन
5. देहरादून का गजेटियर (हिंदी अनुवाद) – प्रकाश थपलियाल
6. ब्रिटिश गढ़वाल गजेटियर – एच. जी. वाल्टन
7. अल्मोड़ा गजेटियर – एच. जी. वाल्टन
8. हिमालयन ट्रेवल्स – जोध सिंह नेगी
9. हिमालयन फोकलोर–  तारादत्त गैरोला
10. हिमालय की यात्रा – काका साहब कालेलकर
11. हिमालय परिचय – राहुल सांकृत्यायन
12. कुमाऊं– राहुल सांकृत्यायन
13. उत्तराखंड के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी -डॉक्टर धर्मपाल सिंह मनराल
14. गढवाल की दिवंगत विभूतियां – भक्त दर्शन
15. मध्य हिमालय का पुरातत्व– डॉ यशवंत सिंह कठौच
16. गढ़वाल पेंटिंग ­- बैरिस्टर मुकुंदी लाल
रुद्रप्रयाग का आदमखोर बाघ – जिम कार्बेट
17. आर्यों का मूल स्थान : मध्य हिमालय – भजन सिंह
18. उत्तराखंड में कुली बेगार प्रथा  –  डॉक्टर शेखर पाठक
19. ब्रिटिश कुमाऊँ गढ़वाल – डॉ आर. एस. टोलिया
20. उत्तराखंड की विभूतियाँ – शक्ति प्रसाद सकलानी
21. मध्य हिमालय की कला – डाक्टर यशवंत सिंह कठौच
22. हिल डायलेक्ट्स ऑफ़ द कुमाऊ डिवीज़न – गंगा दत्त उप्रेती
23. कुमाऊं की चित्रकला – डॉ यशोधर मठपाल
24. सेंट्रल हिमालया – डॉ एम. एस. एस. रावत
25. नैनीताल समाचार 25 साल का सफर – नैनीताल समाचार टीम
26. डिस्कवरी राजाजी–अंजली रवि व पाण्डेय
27. द बॉय फ्रॉम लम्बता – एन. एस. थापा
28. उत्तराखंड संस्कृति–  जसवंत सिंह कठौच
29. उत्तराखंड समग्र ज्ञानकोश–  डॉ. राजेंद्र बलोदी
30. लोनली फिरोज ऑफ़ द बॉर्डर लेंड– कल्याण सिंह पांगती
31. मेघदूत का गढ़वाली में रूपांतरण– आचार्य धर्मानन्द
32. गीता का गढ़वाली अनुवाद-पंडित उमादत्त नैथाणी, नंदकिशोर ढौंडियाल व आदित्य राम
33. गढ़वाली हिंदी शब्दकोश– अरविंद पुरोहित व बीना बेंजवाल
34. गढ़वाली व्याकरण की रूपरेखा – अबोध बन्धु बहुगुणा
35. हिमालय की खश – डॉ. डी. डी. शर्मा
36. हिमालय का महाकुंभ : नन्दा राजजात – रमेश पोखरियाल
37. भीड़ साक्षी है : स्पर्श गंगा– रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
38. एशिया की पीठ पर– प्रो. शेखर पाठक एवं प्रो. उमा भट्ट
39. कुमाऊं का इतिहास –   बद्रीदत्त पांडे
40. गढ़वाल का इतिहास –  हरिकृष्ण रतूड़ी
41. उत्तराखंड का इतिहास –    डॉक्टर शिवप्रसाद डबराल
42. हिमालय का इतिहास  –    डॉक्टर मदन चंद्र भट्ट
43. उत्तराखंड का नवीन इतिहास – डॉ यशवंत सिंह कठौच
44. हिस्ट्री ऑफ़ गढ़वाल – डॉ अजय रावत
45. उत्तराखंड राज्य निर्माण का संक्षिप्त इतिहास -केदार सिंह फोनिया
46. दून एवं उसके आर्किटेक्ट – देवकी नंदन पांडे
47. मसूरी मेडले – प्रो. गणेश शैली

उत्तराखण्ड में प्रथम

1. प्रथम भारत रत्न प्राप्तकर्ता – पं. गोविन्द वल्लभ पन्त 1957

2. प्रथम उत्कृष्ट विधायक पुरूस्कार प्राप्तकर्ता - प्रकाश पन्त ( 2010).

3. प्रथम पदम् विभूषण – डॉ. घनानंद पाण्डेय 1969 (विज्ञान)

4. प्रथम पदम् भूषण – कमलेन्दुमती शाह 1958 समाज सेवा

5. प्रथम पदम् श्री – लक्ष्मण सिंह जंगपांगी 1959

6. प्रथम राष्ट्रीय वीरता पुरूस्कार- हरीश राणा(2003) उत्तरकाशी

7. प्रथम ज्ञानपीठ पुरूस्कार – सुमित्रा नन्दन पन्त 1968 में चिदम्बरा)

8. प्रथम हिंदी साहित्य पुरूस्कार- रस्किन ब्रांड 1992

9. दूसरा हिंदी साहित्य पुरूस्कार- लीलाधर जुगड़ी 1997

10. प्रथम द्रोणाचाय पुरुस्कार- हंसा मनराल 2001

11. हिंदी का पहला समाचार पत्र – गढ़वाल- समाचार( 1902 लेंसडोन पौड़ी से)

12. प्रथम अंतर्राष्ट्रीय निशानेबाज – श्री जसपाल राणा

13. प्रथम गढ़्वाली फीचर फिल्म- जग्वाल, मई-1983, निर्माता- श्री पराशर गौड़

14. प्रथम कुमाऊंनी फीचर फिल्म- मेघा आ, निर्माता -श्री जीवन बिष्ट

15. उत्तराखंड मे जन्मे पहले आदमी नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित – डाक्टर – श्री राजेंद्र पचौरी 2007 Nobel Peace

16. भारतीय थल सेना के पहले उप सेनाध्य्क्ष थे – ले० जनरल गजेन्द्र सिंह रावत  ये देवलथल, पिथौरागढ़ के हैं

17. उत्तराखण्ड का पहला नगर निगम – देहरादून .

18. उत्तराखण्ड की पहली मेयर – श्रीमती मनोरमा शर्मा.

19. उत्तराखण्ड के पहले भूगर्भ शाष्त्री है, प्रो० के०एस० वल्दिया पद्मश्री भी मिल चुका है.

20. उत्तराखण्ड के प्रथम राजा “महाराज शालिवाहन देव” थे, जिनका कार्यकाल 850 ई० माना जाता है, इनकी राजधानी कार्तिकेयपुर। (जोशीमठ)

21. उत्तराखण्ड का पहला राजवंश – कत्यूरी राजवंश।

22. उत्तराखण्ड का ऎसा प्रथम राजवंश है, – पंवार राज वंश (टिहरी के राजा) जिसने लगातार 60 पीढ़ियों तक अपनी रियासत में राज किया। 7 वीं शताब्दी में इस राजवंश की स्थापना हुई थी।

23. उत्तराखण्ड भारतीय गणतंत्र का ऎसापहला राज्य है जहां पर आपदा प्रबंधन हेतु अलग से मंत्रालय तथा विभाग गठित किया गया है.

24. भारतीय गणराज्य में उत्तराखण्ड से प्रथम राज्यपाल – श्री बी०डी० पाण्डे

25. उत्तराखण्ड से संबंधित पहली वेबसाइट www.uttarakhand.org थी। जिसकी स्थापना कनाडा में बसे उत्तराखण्ड मूल के श्री राजीव रावत ने की।

26. उत्तराखण्ड के पहले साहित्यकार, कवि और चित्रकार थे – संभवतः मौलाराम। उनके द्वारा बनाये गये कई चित्र आज भी अहमदाबाद, कलकत्ता और लखनऊ के संग्रहालयों में हैं। उनके द्वारा रचित ग्रन्थ आज भी हैं, यथा- गढ़राजवंश और रणबहादुर चन्द्रिका।

27. उत्तराखण्ड से यू०पी० कौंसिल में सबसे पहले मेंबर – लाला मोहनलाल शाह

28. उत्तराखण्ड की प्रथम महिला पार्षद (नगर पालिका मे) – श्रीमती राजकुमारी आनन्द (1974, देहरादून नगर पालिका, रेसकोर्स क्षेत्र)।

29. उत्तराखण्ड का अपना प्रथम बैंक है: नैनीताल बैंक आफ इण्डिया जिसकी स्थापना 1922 में भारत रत्न स्व० श्री गोबिन्द वल्लभ पंत जी ने की थी।

30. देश  में पहली महिला पुलिस महानिदेशक – कंचन चौधरी भट्टाचार्य

31. उत्तराखण्ड की “जागर” गाने वाली प्रथम महिला – श्रीमती बसन्ती बिष्ट”

32. उच्च न्यायालय, उत्तराखण्ड के पहले मुख्य न्यायाधीश- न्यायमूर्ति अशोक ए० देसाई

33. उत्तराखण्ड के पहले लोक आयुक्त- न्यायमूर्ति सैयद हैदर अब्बास रजा

34. लोक सेवा आयोग, उत्तराखण्ड के पहले अध्यक्ष- श्री एन०पी० नैथानी

35. महिला आयोग, उत्तराखण्ड की पहली अध्यक्षा- डा० (श्रीमती) संतोष चौहान

36. उत्तराखण्ड विधान सभा की पहली उपाध्यक्ष- श्रीमती विजय बड़थ्वाल

37. उत्तराखण्ड के पहले व्यक्ति, जिन्हें रैमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त हुआ- श्री चण्डी प्रसाद भट्ट

38. उत्तराखंड के प्रथम परखनली शिशु ( Test-tube baby ) का जन्म 13 जून 2001 को सैनी आईo वीo एफo फर्टिलिटी रिसर्च सेंटर देहरादून में हुआ.

39. पहला बायो-गैस बिजलीघर – कुमाऊं

40. उत्तराखण्ड से माननीय सर्वोच्च न्यायालय में पहले न्यायाधीश – श्री प्रफुल्ल चन्द्र पन्त

41. उत्तराखण्ड के प्रथम व्यक्ति जो दो प्रदेशों के मुख्यमंत्री रहे : श्री नारायण दत्त तिवारी

42. उत्तराखंड से पहली महिला मेजर जनरल – माया टमटा

43. उत्तराखंड की पहली महाधिवक्ता –ललिता प्रसाद नैथानी

44. उत्तराखंड की पहली महिला कुलपति – प्रो. सुशीला डोभाल

45. उत्तराखण्ड से भारत गणराज्य में प्रथम
मुख्यमंत्री – पं० गोबिन्द वल्लभ पंत

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मंगलवार, 23 मई 2017

उत्तराखण्ड ऐतिहासिक तथ्य

किसी भी एक पुस्तक में ना मिलने वाली जानकारी का अद्वितीय संग्रह

1. महाभारत एवं पुराणों में केदारनाथ का पौराणिक नाम- स्वर्गभूमि

2. हरिद्वार का प्राचीन नाम- मायावती या गंगाद्वार

3. धर्मग्रन्थों में उल्लेखित देवप्रयाग का नाम- सुदर्शन

4. कोसी नदी का प्राचीन नाम- कौशिकी

5. जागेश्वर का पुराना नाम- यागीश्वर

6. बैजनाथ का पुराना नाम- वैद्यनाथ

7. ऋषिकेश का पुराना नाम- कुब्जाम्रक

8. गढ़वाल-कुमाऊँ का प्राचीन नाम- ब्रह्मपुर

9.गढ़वाल क्षेत्र का प्राचीन नाम- बद्रिकाश्रम या केदारखण्ड

10. रुद्रप्रयाग का पुराना नाम- पुनाड़

11. पाली साहित्य में उत्तराखण्ड- हिमवंत

12. मुनस्यारी का पुराना नाम- तिकसेन

13. टनकपुर का पुराना नाम- ग्रास्टिनगज

14. पिथौरागढ़ का पुराना नाम- सौर

15. अल्मोड़ा का पुराना नाम- आलमनगर/ राजाओं की घाटी

16. गैरसैण का नया नाम- चन्द्रनगर

17. देहरादून का पुराना नाम- द्रोण घाटी

18.काशीपुर- गोविषाण

19. नैनीताल- त्रिऋषि सरोवर

20. कोटद्वार- मोरध्वज

21. चौकी घाट- कण्वाश्रम

22. चमोली- अल्कापुर

23. देवप्रयाग- सुदर्शन तीर्थ/ अंतरांग विषय

24. टिहरी क्षेत्र- भारद्वाज

25. वर्तमान अल्मोड़ा & नैनीताल क्षेत्र- आसेय

26. उत्तरकाशी- बाड़ाहाट

27. गोपेश्वर- गोस्थल/गोथला

28. कालसी- कालकूट/सुधनगर

29. श्रीनगर- श्रीपुर/श्रीक्षेत्र

30. नानकमत्ता- बख्शी

31. चंपावत- कमादेश

32. घनसाली- धणाक

33. विष्णुप्रयाग- नारयण भट्टारक

34. कौसानी- बलना

35. द्वाराहाट- दौरा

उत्तराखण्ड के आदि निवासी

उत्तराखण्ड के आदि निवासी-ः अभी तक के अध्ययन से स्पष्ट है कि उत्तराखण्ड में मानव निवास के साक्ष्य प्रागैतिहासिक काल से प्राप्त होते है। जिनका इतिहासकारों ने विभिन्न उल्लेखन किया है परन्तु विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर मैं निम्न विवरण उपलब्ध करा रहा हूँ-

1.किरात-ः जॉर्ज गियर्सन के अनुसार के अनुसार उत्तराखण्ड की प्राचीनतम जाति किरात थी।
किरातों के सम्बन्ध में निम्न साक्ष्य उपलब्ध है-

✓किरात प्रजाति के अन्य नाम किर तथा किन्नर या किरपुरूष मिलते है।
✓पुराणों में गंगा, पार्वती, दुर्गा को किराती कहा गया है।
✓किरात शब्द की उत्पत्ति ‘‘कृ + अत‘‘ शब्द से हुई है जो संस्कृत शब्द का अंतिम शब्द है।
✓महाभारत के वन पर्व तथा भीष्म पर्व में उत्तराखण्ड में किरात जाति का उल्लेख मिलता है।
✓किरात मुख्य रूप घुमक्कड़,आखेटक व पशुचारक थी। इनका मुख्य खाद्य सत्तू था।
✓वर्तमान में ये हरिजन व शिल्पकार नाम से जाने जाते है।
✓मेगस्थनीज की पुस्तक इंडिका में चौथी सदी ई.पू. इस क्षेत्र में किरातों का साक्ष्य उल्लेखित है।ए

नोट-ः इतिहासकार शिवप्रसाद डबराल उत्तराखण्ड की मूल जाति कोल या मुण्ड जाति को मानते है किन्तु प्रमाणिकता की कमी के कारण यह तथ्य मान्य नहीं होता।

2.कोल-ः विभिन्न स्थानीय नामों में ता, दा, गढ़, गाढ़ होने से डॉ. डबराल ने इन्हें मूल जाति माना है।
✓साहित्यिक ग्रन्थों में कोलों का वर्णन मुण्ड या शवर नाम मिलता है।
✓ये आदम जाति के कृषि व्यवसायी लोग थे।
✓आदम जातियों की भांति के समान प्रकृति पुजारी थे।

3.खस-ः खसों को आर्यों का वंशज माना गया हैं।
✓राजशेखर की पुस्तक ‘‘काव्यमिमांशा‘‘ में कार्तिकेयपुर के शासक खसपति का उल्लेख किया गया है।
✓बंगाल के पाल शासकों के अभिलेखों में अशोक-चल्ल नामक राजा व क्षेत्र को खसादेश कहा गया है।
✓वृहतसंहिता में खसों को तंगा कहा गया है।
✓खस जाति गुप्तकालीन थी।
खसों में प्रचलित सामाजिक प्रथाएं-
क. घर-जवाईं-ः
ख. जेठों-ः ज्येष्ठ पुत्र को उत्तराधिकारी
ग. टेकुवा-ः विधवाओं का पराये मर्दों से सम्बन्ध
घ. देवदासी प्रथा-ः घर की बड़ी पुत्रियों को मंदिरों में समर्पित करना।

4. शक जाति-ः शक पश्चिमी एशिया से आई हुई अश्वपालक जाति थी।
✓इतिहासकार राहुल सांस्कृत्यान के अनुसार खश व शक समान जातियां थी खस ही अपभ्रंश होकर शक बना।
✓उत्तराखण्ड से प्राप्त इनके अराध्यदेव सूर्य के मंदिरों से इस जाति के साक्ष्य प्राप्त होते है

लेख संजोया-: भगवान धामी  सम्पर्क-: 8791333472

स्रोत-:
1. उत्तराखण्ड का राजनैतिक इतिहास Dr. अजय रावत
2. उत्तराखण्ड का राजनैतिक व सामाजिक इतिहास- घनश्याम जोशी
3. केशरीनंदन त्रिपाठी
4. राजेंद्र सिंह बलुदी
5. यशवंत सिंह कठौच
6. जवाहर उत्तरांचल कोष
7. मेरा पहाड़ फोरम
8. हिमालयी राज्य सन्दर्भ कोष जय सिंह रावत
9. उत्तराखण्ड हिमालय विकास नौटियाल
10. उत्तराखण्ड औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था त्यागी/जुयाल

उत्तराखण्ड का इतिहास "आद्य एवं ऐतिहासिक"

आद्यऐतिहासिक काल- उत्तराखण्ड के इस काल की जानकारी पौराणिक ग्रन्थों से मिलती है। अतः इस काल को पौराणिक काल कहा जाता है। इस काल को उपरोक्त श्रोतों के माध्यम से जाना जा सकता है।

ऐतिहासिक काल- उत्तराखण्ड के इस काल की जानकारी सिक्कों, अभिलेखों, ताम्रपत्रों के आधार पर प्राचीन काल से आधुनिक काल तक का इतिहास संजों कर प्रस्तुत किया गया है। सबसे अधिक प्रश्नोत्तरी भी इसी भाग से पूछी जाती है अतः इस काल का अध्ययन बहुत ही सटीकता से करना अनिवार्य है।

उत्तराखण्ड के प्राचीन से लेकर आधुनिक काल  एक सम्पूर्ण अध्ययन- अगले पोस्ट में

उत्तराखण्ड का इतिहास "प्रागैतिहासिक काल"


प्रागैतिहासिक काल- प्राचीन शैल चित्रों, गुफाओं, कंकालों मृदभाण्ड तथा धातु उपकरणों द्वारा इस काल की जानकारी मिलती है।

मुख्य प्रागैतिहासिक श्रोत-

1. लाखु उड्यार- प्राचीन गुफा चित्र
स्थिति- दलबैण्ड, बाड़ीछीना अल्मोड़ा में सुयाल नदी के तट पर स्थित

खोज- 1963 में यशवंत सिंह कठौच (श्री कठौच ने उत्तराखण्ड का आधुनिक इतिहास पुस्तक लिखी)

विशेषता- मानव व पशुओं की लाल रंग में नृत्य करती आकृतियां

2. ग्वारख्या उड्यार- प्राचीन गुफा चित्र डॉ. मठपाल के अनुसार इसका नामकरण गोरखों के द्वारा लूट का माल छिपाने के कारण पड़ा था। किन्तु इस चित्रित गुफा में इतना स्थान नहीं है कि यहां सामान छिपाया जाय सम्भवतः इस स्थान के निकट गोरखों ने कैंप डाला था अतः लोगों में यह विश्वास हो गया कि इसमें चित्रों को गोरखों ने चित्रित किया था परन्तु यह पाषाणकालीन आकृतियां है।

स्थिति- डुंग्री गांव, चमोली जिले में अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित

खोज- राकेश भट्ट द्वारा खोजे गए इसका अध्ययन यशोधर मठपाल ने किया

विशेषता- मानव भेड़ लोमड़ी बारसिम्हा आदि पशुओं की आकृतियां बनी है। डॉ. मठपाल के अनुसार यहां 41 आकृतियां है जिसमें 30 मानव, 8 पशु, तथा 3 पुरूषों की आकृतियां है। चित्रकला की दृष्टि से उत्तराखण्ड की सबसे सुन्दर आकृतियां मानी जाती है। यहां मनुष्य को त्रिशुल रूप में दर्शाया गया है। इस गुफा में चित्र का मुख्य विषय मनुष्य द्वारा पशुओं को हांका देकर घेरते हुए दर्शाना है।

3. किमनी गांव- शैल चित्रित गुफा
स्थिति- थराली विकासखंड चमोली में
विशेषता- यहां से हथियार व पशुओं के शैल चित्र प्राप्त हुए।

4. मलारी गांव- यहां से 5.2 किलो का सोने का मुखावतरण तथा लगभग 1000 से अधिक मृदभाण्ड प्राप्त हुए है।

स्थिति- तिब्बत से सटा मलारी गांव चमोली जिले में स्थित है।

खोज- 1956 में शवाधान की खोज। 2002 में गढ़वाल विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं द्वारा

विशेषता- पाषाणकालीन शवाधान जो हडप्पाकालीन माना गया है।

5. ल्वेथाप गांव- शैलचित्र जिसमें मानव को हाथों में हाथ डालकर दिखाया गया है।

स्थिति- अल्मोड़ा जिले में

विशेषता- मानव को शिकार करते हुए दिखाया गया है।

6. फलसीमा- शैलचित्र जिनमें मानव को नृत्य करती तथा योग करती हुई आकृतियां।

स्थिति- अल्मोड़ा में

विशेषता- मानव की योगाकृति

7. बनकोट- सम्पूर्ण गांव से ताम्र आकृतियां प्राप्त हुई है।

स्थिति- पिथौरागढ़ जिले का अंतिम गांव।

विशेषता- 8 ताम्र मानवाकृतियां।

8. हुडली- शैलचित्र

स्थिति- उत्तरकाशी

विशेषता- नीले रंग का शैलचित्र

9. पेटशाल- मानवाकृतियां
स्थिति- पूनाकोट गांव अल्मोड़ा
खोज- खोज यशोधर मठपाल द्वारा
विशेषता- कत्थई रंग के शैल चित्र

10. देवीधुरा की समाधियां- प्रागैतिहासिक समाधियां
स्थिति- चम्पावत जिले में
खोज- 1856 में हेनवुड द्वारा
विशेषता- बुर्जहोम कश्मीर के समान समाधियां

उत्तराखण्ड का इतिहास


उत्तराखण्ड का इतिहास-ः मैंने ये अनुभव किया है कि उत्तराखण्ड का इतिहास श्रोतों के अभाव में अभ्यर्थियों के लिए एक बहुत ही बड़ी समस्या बन के उभरता है। जहां तक इतिहास जानने की बात करें तो इतिहास का सामान्यतः अध्ययन तीन भागों में बांट के किया जाता है तथा उसके विभिन्न श्रोत होते है-

क्रमशः- भाग व श्रोत

1.प्रागैतिहासिक काल
2.आद्यऐतिहासिक काल
3.ऐतिहासिक काल

उत्तराखण्ड इतिहास के प्रमुख श्रोत-

(क). साहित्यिक श्रोत-ः साहित्यिक श्रोतों में उत्तराखण्ड का आद्यऐतिहासिक विवरण प्राप्त होता है।

▷उत्तराखण्ड का सबसे पहला उल्लेख ऋग्वेद में ‘देवभूमि या मनीषियों की भूमि‘ नाम से मिलता है।

▷ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ ऐतरेय ब्राह्मण में ‘कुरूओं की भूमि या उत्तरकुरू‘ नाम से उल्लेखित है।

▷स्कंदपुराण में माया क्षेत्र (हरिद्वार) से हिमालय तक के क्षेत्र को ‘‘केदारखण्ड‘‘ तथा नन्दादेवी से कालागिरी पहाड़ी (चम्पावत) तक के क्षेत्र को ‘‘मानसखण्ड‘‘ नाम से जाना जाता है।

▷पालीभाषा के बौद्धग्रन्थों में उत्तराखण्ड को ‘‘हिमवंत‘‘ कहा गया है।

▷उत्तराखण्ड में प्रचलित लोक-साहित्य में लोकगाथाएं प्रचलित है जिन्हें स्थानीय भाषा में पँवाड़ा या भड़ौ तथा जागर कहा जाता है।

▷मिन्हास-उज-सिराज की पुस्तक तबकाते-नासिरी के अनुसार बलबन के समकालीन गढ़नरेश- राणा देवपाल

  विदेशी साहित्य-ः

▷चीनी यात्री युवान-च्वांङ (ह्वेनसांग) ने सातवीं सदी में अपने यात्रा वृतांत ‘‘सी-यू-की‘‘ में उत्तराखण्ड के विभिन्न शहरों का उल्लेख किया है यथा-

ब्रह्मपुर-         उत्तराखण्ड
शत्रुघ्न नगर-  उत्तरकाशी-हिमाचल के मध्य का क्षेत्र
गोविषाण-     काशीपुर
सुधनगर-       कालसी
तिकसेन-      मुन्स्यारी
बख्शी-         नानकमत्ता
ग्रास्टीनगंज-   टनकपुर
मो-यू-लो -     हरिद्वार

▷मुगल काल में आए पुर्तगाली यात्री जेसुएट पादरी अन्तोनियो दे अन्द्रोदे 1624 में श्रीनगर पहुंचे उस समय यहां के शासक श्यामशाह थे।

▷तैमुर की आत्मकथा मुलुफात-इ-तिमुरी के अनुसार गंगाद्वार के निकट युद्ध करने वाला शासकों का क्रमशः उल्लेख मिलता है- 1. बहरूज (कुटिला/कुपिला के राजा) 2. रतनसेन (सिरमौर का राजा)

▷फ्रांसिस बर्नियर ने हरिद्वार को शिव की राजधानी के रूप में उल्लेखित किया है।

केदारखण्ड या गढ़वाल का इतिहास-ः पाणिनी के अष्टाध्यायी, कालिदास के रघुवंशम व  मेघदूतम्, राजशेखर की काव्यमिंमासा महाकवि भरत के मानोदय काव्य तथा मोलाराम के गढ़राजवंश नामक पुस्तकों से इस क्षेत्र का उल्लेख मिलता है।

◈प्रारम्भ में गढवाल क्षेत्र को बद्रीकाश्रम, तपोभूमि, स्वर्गभूमि तथा केदारखण्ड नामों से जाना जाता था।

◈इतिहासकार हरिराम धस्माना, भजन सिंह तथा शिवांगी नौटियाल के अनुसार ऋग्वेद में उल्लेखित सप्तसैंधव प्रदेश वर्तमान गढ़वाल ही था।

◈चमोली के निकट स्थित नारद गुफा, व्यास गुफा, मुचकुन्द गुफाओं में वेदों की रचना वादरायण या वेदव्यास ने की थी।

◈पुराणों के अनुसार मनु का निवास स्थान तथा कुबेर की राजधानी अल्कापुरी(फूलों की घाटी) को माना जाता है।

◈वैदिक काल में गढ़वाल क्षेत्र में दो प्रसिद्ध विद्यापीठ थी- 1. बद्रीकाश्रम 2. कण्वाश्रम

◈लगभग 1515 में पंवार राजा अजयपाल ने इस क्षेत्र के 52 गढ़ों का एकीकरण किया अतः इस क्षेत्र का नाम गढ़वाल पड़ा।

मानसखण्ड या कुमाऊँ का इतिहास-ः पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार चम्पावत के निकट कच्छप(कछुआ) की की पीठ आकृति के समान कानादेव या कान्तेश्वर पहाड़ी पर भगवान विष्णु का कुर्मावतार हुआ था अतः क्षेत्र का नाम कूमु पड़ा।

◈कुमु शब्द अपभ्रंश होकर हिन्दी में कुमाऊँ बना अतः क्षेत्र को में कुमाऊँ कहा जाने लगा।

◈कुमाऊँ शब्द का पहला उल्लेख अबुल फजल की पुस्तक आइने अकबरी में मिलता है। अभिलेखीय साक्ष्यों में नागनाथ के अभिलेख से मिलता है।

◈मुस्लिम इतिहासकारों ने चन्दों के राज्यों को कुमायुं कहा है।

◈तारीख-ए-मुबारकशाही के अनुसार 1380 में दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक द्वारा कटहर क्षेत्र में विद्रोहियों का दमन किया किन्तु ये विद्रोही भाग कर कुमाऊँ क्षेत्र आये थे।

◈वर्तमान उत्तराखण्ड के 6 जिले इस क्षेत्र में आते है।

(ख). अभिलेखीय श्रोत-ः इतिहास जानने का महत्वपूर्ण श्रोत होता है तात्कालिक अभिलेखित शैलखण्ड या ताम्रपत्र उत्तराखण्ड के कई क्षेत्रों से पाए गये अभिलेख निम्न है-

1.गोपेश्वर त्रिशुल-ः चमोली में स्थित रूद्रशिव के मंदिर परिसर से अभिलेखित त्रिशुल प्राप्त हुआ है जिसमें मुख्य रूप से दो अभिलेख मौजूद है- एक अभिलेख गणपतिनाथ का तथा दूसरा अभिलेख है अशोकचल्ल का है। इसमें नाग वंशीय शासकों स्कन्दनाग, विभुनाग, तथा अंशुनाग का उल्लेख मिलता है।

2.कालसी शिलालेख-ः अशोक ने उत्तरी सीमा पर 257 ई. में टोंस व यमुना नदी के संगम पर कालसी नामक स्थान पर शिलालेख स्थापित करवाया। इसकी विशेषताएं निम्न है-

◆इस अभिलेख की खोज 1860 में जॉन फॉरेस्ट ने की थी।
◆ यह लेख पाली भाषा में है इसमें ब्राह्मी लिपि में है।
◆इस अभिलेख में क्षेत्र को अपरांत कहा गया है।
◆क्षेत्र के लोगों को इसमें पुलिंद कहा गया है।
◆इस अभिलेख में सम्राट अशोक ने घोषणा की है कि उसने मनुष्यों एवं पशुओं की चिकित्सा की व्यवस्था कर दी है।
◆इसमें सम्राट ने अपील की है कि हिंसा त्याग कर अहिंसा को अपनायी जाय।

3.राजकुमारी ईश्वरा का अभिलेख-ः लाखामण्डल देहरादून के लाक्षेश्वर शिव मंदिर से 5वीं सदी का एक अभिलेख उल्लेखित प्राप्त हुआ है जो सम्भवतः यादव राजकुमारी थी। इसके अनुसार यमुना उपत्यका में यादवों का राज्य था।

4.बागेश्वर शिलालेख-ः बागेश्वर के शिव मंदिर से कत्यूरी राजा भूदेव का लेख प्राप्त हुआ जिसमें 8 राजाओं के नाम लिखित है। इस शिलालेख के अनुसार प्रथम कत्यूरी शासक बसन्तदेव थे।

5.पाण्डुकेश्वर ताम्र लेख-ः बद्रीनाथ कि निकट पाण्डुकेश्वर मंदिर में चार ताम्र पत्र प्राप्त हुए है जिसमें कत्यूरियों की राजधानी कार्तिकेयपुर उल्लेखित है। एक ताम्रपत्र में लेखक गंगाभद्र का नाम है। इन ताम्रलेखों का उल्लेखन ललितसुर देव ने करवाया था।

6.धारशिल-शिलालेख-ः ऊखीमठ में स्थित पंवार शासक अनन्तपाल का अभिलेख।

7.कत्यूरी राजाओं के ताम्रपत्र-ः चम्पावत तथा बैजनाथ से प्राप्त इन लेखों के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था का निम्न उल्लेख मिलता है-

▪पल्लिका- गाँव महत्तम- ग्राम शासक
▪प्रतिरक्षक- द्वार रक्षकगोफ्त- रक्षक
▪बलाध्यक्षक- सेनानयककुलचारिक- तहसीलदार
▪अक्षयपट्लिक- लेखापरीक्षकमहादंडनायक- प्रधान सेनापति

उपरोक्त अभिलेखों के अतिरिक्त समुद्रगुप्त के प्रयाग-प्रशस्ति तथा सहणपाल के बोधगया शिलालेख से भी उत्तराखण्ड का झलकता है।
◈समुद्रगुप्त के प्रयाग-प्रशस्ति में उत्तराखण्ड का नाम- कर्तपुर मिलता है।

(ग). प्राचीन मुद्रा श्रोत-ः उत्तराखण्ड के कई क्षेत्रों से प्राचीनतम मुद्राएं प्राप्त होती है जो कि उत्तराखण्ड की राजनैतिक शक्ति का उल्लेख प्राप्त होता है-

कुणिन्द मुद्राएं-ः उत्तराखण्ड के कई क्षेत्रों जैसे- अल्मोड़ा, देहरादून, हरिद्वार सहारनपुर इत्यादि स्थानों से कुणिन्द कालीन मुद्राएं प्राप्त होती है। प्रमुख मुद्राएं-
◈अमोघभूति की मुद्राऐं- अल्मोड़ा, देहरादून, तथा हरिद्वार क्षेत्र से प्राप्त चांदी तथा तांबें की मुद्राएं जिनमें खरोष्ठी लिपि में ‘‘कुणिन्दस्य अमोघभूति महरजसः‘‘ उल्लेखित है।

✓इन मुद्राओं से अमोघभूति के सबसे प्रतापी कुणिन्द शासक होने का विवरण प्राप्त होता है।

✓अमोघभूति की चाँदी की मुद्राओं का भार 31-38 ग्रेन है जबकि तांबे की मुद्राओं का भार 52 ग्रेन है।

◈अल्मोड़ा की मुद्राऐं- 1914 में अल्मोडा 119-327 ग्रेन वजनी कुणिन्द मुद्राएं प्राप्त होती है जिनमें शिवदत्त, शिवपालित, हरिदत्त तथा शिवरक्षित की मुद्राएं प्राप्त हुई है।
✓इन मुद्राओं में नारी, मृग, स्वास्तिक, चक्र, नाग, छत्रयुक्त छः पर्वत, नन्दी, वृक्ष, कलश, इत्यादि के चित्र अंकित है।

◈छत्रेश्वर की मुद्राएं- ब्राह्मी लिपि में ‘‘भगवत् चतेश्वर महास्तमनः‘‘ उत्कीर्ण ताम्र मुद्राएं सहारनपुर से प्राप्त हुई है। ये कुणिन्द राजा छत्रेश्वर की है। इन मुद्राओं का भार 131-291ग्रेन है।

कीर्तिशाह

कीर्तिशाह ⏩ 19 जनवरी, 1874 को जन्में। 13 वर्ष की आयु में गद्दी में बैठे। ⏩ महारानी गुलेरिया के प्रभूत्वाधिन कार्य। ⏩ 1892 में नेप...